अच्छी खबर / एम्स जोधपुर में बायो सेफ्टी लैब विकसित करने की राह आसान, हाईकोर्ट ने वर्कऑर्डर जारी करने से रोक हटाई, इससे कोरोना सैंपल की जांच 6 गुना बढ़ जाएगी

- एम्स में बायो सेफ्टी लैब लेवल थर्ड की सुविधा विकसित करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार मंत्रालय ने 2.37 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया था
- लैब बनाने के लिए एम्स जोधपुर ने टेंडर प्रक्रिया शुरू की और विभिन्न फर्म ने तकनीकी बिड पेश की
दैनिक भास्कर
Apr 09, 2020, 03:45 AM IST
जोधपुर. कोरोना महामारी के दिनोंदिन बढ़ते प्रभाव के बीच एम्स जोधपुर को राजस्थान हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। एम्स में रीजनल लेवल वायरल रिसर्च एंड डाइग्नोस्टिक लेबरोट्री (वीआरडीएल) के तहत बायो सेफ्टी लैब (लेवल थर्ड) की सुविधा विकसित करने के लिए वर्कऑर्डर जारी करने के पूर्व में लगाई रोक को हाईकोर्ट ने हटा दिया है।
इससे यह सुविधा जल्द विकसित होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह लैब कोरोना वायरस सहित सभी संक्रमण बीमारियों के सैम्पल की जांच, उसके आइसोलेशन व कल्चर तथा रिसर्च करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। कोरोना वायरस महामारी के बीच एम्स की भी कोशिश है कि अगले एक महीने में यह सुविधा विकसित हो जाए। वैसे फर्म को लैब का पूरा काम चार महीने में पूरा किया जाना है।
मामले की गंभीरता देख एम्स चलाकर पहुंचा हाईकोर्ट
पूरे विश्व सहित भारत व राजस्थान में कोरोना वायरस फैल रहा है। जोधपुर भी बुरी तरह से प्रभावित है। पिछले चार महीने से लैब विकसित करने से जुड़ा मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। एम्स ने टेंडर संबंधी सभी प्रकिया पूरी कर ली थी, बस केवल वर्कऑर्डर जारी करने तक की देरी थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार के असिस्टेंट सॉलीसिटर जनरल संजीत पुरोहित ने एम्स की ओर से एक प्रार्थना पत्र पेश कर वर्कऑर्डर जारी करने पर लगाई रोक हटाने का आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया, कि कोरोना वायरस के सैम्पल जांच व उसके नियंत्रण में यह लैब काफी कारगर साबित होगी। जस्टिस अरुण भंसाली ने असिस्टेंट सॉलीसिटर जनरल पुरोहित के तर्क से सहमति जताते हुए प्रार्थना पत्र को स्वीकार किया और पूर्व में लगाई रोक को हटा दिया।
रोक हटने के फायदे को ऐसे समझें
हाईकोर्ट द्वारा वर्क ऑर्डर से रोक हटाने से लैब विकसित करने का मार्ग पूरी तरह से प्रशस्त हो गया है। केवल वर्कऑर्डर जारी किया जाना है। फर्म को लैब का पूरा काम चार महीने में पूरा करना है कि सूत्रों के अनुसार एम्स की कोशिश है, कि कोरोना की जांच संबंधी उपकरण आदि लगाने का काम एक महीने में फर्म से करवाए, ताकि कोरोना वायरस के सैम्पल की जांच में और तेजी आए। उदाहरण के तौर पर समझे तो एम्स में अगर अभी कोरोना वायरस के 100 सैंपल की जांच हो रही हो तो इस लैब के विकसित होने के बाद सैम्पल जांच की क्षमता बढ़ जाएगी तथा यह संख्या 500-600 हो जाएगी। फिलहाल पूरे देश में सैम्पल की जांच धीमी होना ही सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
यूं समझें लैब की उपयोगिता
बायो सेफ्टी लैब में लेवल थर्ड की सुविधा विकसित किया जाना प्रस्तावित है। इस लैब में कोरोना वायरस सहित कई क्रिटिकल बीमारियों की जांच की जाएगी। इन बीमारियों से जुड़े सैंपल जांचे जाएंगे। इसके अलावा इन बीमारियों के आइसालेशन व कल्चर पहचाने का भी काम होगा। कोरोना सहित अन्य बीमारियों पर वैक्सीन बनाने पर रिसर्च आदि भी की जाएगी। लैब के जरिए कोरोना वायरस के ट्रीटमेंट तथा इस पर नियंत्रण की स्ट्रेटजी भी बनाई जा सकेगी।
2 करोड़ 37 लाख खर्च होंगे लैब पर
इस लैब में उपकरण व जरूरी निर्माण पर 2 करोड़ 37 लाख 50 हजार रुपए खर्च होंगे। पांच साल में करीब 94 लाख रुपए इस लैब के मेंटनेंस पर खर्च होंगे।
4 माह से याचिका विचाराधीन
एम्स में बायो सेफ्टी लैब लेवल थर्ड की सुविधा विकसित करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार मंत्रालय ने 2.37 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया था। लैब बनाने के लिए एम्स जोधपुर ने टेंडर प्रक्रिया शुरू की और विभिन्न फर्म ने तकनीकी बिड पेश की। इसमें करतोस इंटरनेशनल फर्म असफल रही तो उसने पूरी प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिस पर कोर्ट ने 16 जनवरी 20 को टेंडर प्रक्रिया तो जारी रखने के लिए कहा। लेकिन सफल रहने वाली फर्म को वर्कऑर्डर जारी करने पर रोक लगा दी। पिछले चार महीने से याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन है।